Jaunpur news तेरह साल बाद मां की ममता ने साधु के वेश में बेटे को पहचान लिया, राकेश के मिलन से नम हुई हर आंख

Neeraj Yadav Swatantra
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बलरामपुर गांव में घटा चमत्कारी दृश्य, भीख मांगता बेटा निकला मां की गोद का बिछड़ा लाल


📍 बलरामपुर, जौनपुर | संवाददाता - आवाज़ न्यूज़


कभी-कभी जिंदगी ऐसे मोड़ पर लाती है जो किसी चमत्कार से कम नहीं होते। बलरामपुर गांव में बुधवार को ऐसा ही एक हृदयस्पर्शी दृश्य सामने आया, जब तेरह साल पहले लापता हुआ एक बेटा, साधु के वेश में, अपनी ही मां के दरवाजे पर भीख मांगने आ पहुंचा — और मां की ममता ने उसे एक पल में पहचान लिया।


👁 “राकेश!” — मां की एक पुकार और साधु की आंखों से बह निकले आंसू


गांव की विधवा महिला, जिनके पति मुखई राम की मृत्यु वर्ष 2012 में हो चुकी थी, अपने तीन बेटों के साथ संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत कर रही थीं। तभी उनके सबसे बड़े बेटे राकेश (19 वर्ष) अचानक लापता हो गए। वर्षों की खोजबीन और पुलिसिया भाग-दौड़ के बाद परिवार ने उम्मीदें छोड़ दी थीं।


लेकिन सोमवार, 14 जुलाई को, एक गेरुए वस्त्रधारी, लम्बी दाढ़ी वाला साधु जब गांव में भीख मांगता पहुंचा, और मुखई राम की पत्नी के दरवाजे पर रुका, तो मां की नजर उसकी आंखों में पड़ी।

दिल ने कहा — "यह मेरा राकेश है!"


मां कुछ बोल पाती, इससे पहले साधु आगे बढ़ गया। लेकिन पड़ोसियों को भी शक हुआ, और खोजबीन का सिलसिला फिर शुरू हुआ।


🕉 चंदवक बाजार में हुआ मिलन, मां-बेटे का आलिंगन बना ईश्वर की लीला


बुधवार को खबर आई कि एक साधु चंदवक बाजार के दुर्गा मंदिर के पास देखा गया है। जब परिवार वहां पहुंचा, मां ने जैसे ही उसकी आंखों में देखा, आंसुओं से डबडबाई आंखों से चिल्लाई — “राकेश...!”


पहले तो वह साधु इंकार करता रहा, लेकिन मां और भाइयों के आंसुओं, स्मृतियों और ममता के आगे टिक नहीं पाया।

फूट-फूट कर रो पड़ा।

तेरह साल से गुम राकेश, एक बार फिर मां की गोद में लौट आया।


😢 गांव में उमड़ी भीड़, हर आंख हुई नम


इस चमत्कारी मिलन को देखने के लिए गांव में भारी भीड़ जमा हो गई।

हर किसी की आंखें नम थीं।

लोग कहने लगे —


> “यह मां की ममता का चमत्कार है... यह ईश्वर की लीला है...”




❓ अभी तक नहीं स्पष्ट — कहां था राकेश? क्यों बना साधु?


अब तक यह पता नहीं चल पाया है कि राकेश इन तेरह वर्षों में कहां था, कैसे जीवन गुजारा, और साधु बनने का कारण क्या था।

परिवार की कोशिश है कि राकेश फिर से सामान्य जीवन में लौटे और खोए हुए वर्षों की भरपाई हो सके।



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🔖 यह सिर्फ खबर नहीं, मां-बेटे के रिश्ते की अमर गाथा है।


ममता की आंखें न समय देखती हैं, न वेशभूषा —

वो तो सिर्फ अपने बच्चे को पहचानती हैं।


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