Jaunpur News जौनपुर में एसआईआर अभियान के दौरान समाजवादी पार्टी की सुस्ती उजागर, जिला अध्यक्ष की भूमिका पर सवाल तेज

Neeraj Yadav Swatantra
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जौनपुर में एसआईआर अभियान के दौरान समाजवादी पार्टी की सुस्ती उजागर, जिला अध्यक्ष की भूमिका पर सवाल तेज


 Aawaz News जौनपुर।

स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) का अभियान पूरे देश में चल रहा है, लेकिन जौनपुर में समाजवादी पार्टी की सक्रियता बेहद कम दिखाई दे रही है। संगठन स्तर पर जिस तरह की बैठकों और समीक्षा की जरूरत थी, वह अब तक जमीन पर नहीं उतर सकी है। इससे कार्यकर्ताओं के बीच असमंजस की स्थिति बनी हुई है।


जौनपुर का राजनीतिक महत्व किसी से छिपा नहीं है। जिले की 9 विधानसभा सीटों में से 5 सीटें—मल्हनी, मुंगरा बादशाहपुर, मछलीशहर, केराकत और जफराबाद—पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी गठबंधन के खाते में आई थीं। इतनी मजबूत स्थिति के बावजूद एसआईआर जैसे अहम अभियान में संगठन की धीमी रफ्तार समझ से परे मानी जा रही है।


सीमित कार्यक्रमों में ही दिखे जिला अध्यक्ष


जिला अध्यक्ष राकेश मौर्य एसआईआर के दौरान बहुत कम कार्यक्रमों में नजर आए। वे केवल शाहगंज के पूर्व विधायक शैलेंद्र यादव ‘ललई’ द्वारा बुलाई गई बैठक में शामिल हुए।

और, एसआईआर के पर्यवेक्षक बनाए गए राम मूर्ति वर्मा के साथ होटल में बैठकों के दौरान, तो कभी जिला निर्वाचन अधिकारी के कार्यक्रम में   दिखाई दिए। कुल मिल जुलाकर जिला अध्यक्ष राकेश जौनपुर जैसे महत्वपूर्ण जिले में समाजवादी पार्टी को सक्रिय करने में नाकाम रहे ।

इसके बावजूद, 4 नवंबर से 11 दिसंबर तक चलने वाले इस अभियान के बीच न तो जिले की 9 विधानसभा क्षेत्रों में कोई बड़ी समीक्षा बैठक हुई,और न ही ब्लॉक व बूथ अध्यक्षों को बुलाकर कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश दिया गया। 

निजी कार्यक्रमों में व्यस्तता का आरोप


स्थानीय कार्यकर्ताओं का कहना है कि जिला अध्यक्ष अधिकतर समय निजी कार्यक्रमों में ही व्यस्त रहे। इसी कारण एसआईआर को लेकर कोई ठोस कार्यक्रम सामने नहीं आया।

हालाँकि, कुछ पदाधिकारी अपने स्तर पर बूथों पर सक्रिय दिखाई दिए, लेकिन जिला संगठन की ओर से कोई व्यापक पहल नहीं हुई।


चुनाव से पहले संगठन की कमजोरी खुलकर सामने


मतदाता सूची का पुनरीक्षण किसी भी राजनीतिक दल के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि आगामी चुनाव की पूरी तैयारी इसी आधार पर टिकी होती है।

जौनपुर जैसे बड़े जिले में समाजवादी पार्टी की यह सुस्ती कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं दोनों को निराश कर रही है।


राजनीतिक जानकारों का मानना है कि

अगर आने वाले दिनों में संगठन अपनी गति नहीं बढ़ाता,

तो 2027 के चुनाव की तैयारी पर इसका सीधा असर पड़ सकता है।


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