बदलापुर /जौनपुर
आजादी आंदोलन के गैर समझौतावादी धारा के महान क्रांतिकारी व काकोरी-ऐक्शन के अमर शहीद - रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खां, रोशन सिंह व राजेंद्र नाथ लाहिड़ी के शहादत दिवस के अवसर पर काकोरी-ऐक्शन शताब्दी वर्ष आयोजन समिति की ओर से 17 दिसम्बर 2025 को सराय पड़री बाजार, जौनपुर में जन सभा आयोजित की गई। जनसभा की शुरुआत में काकोरी-ऐक्शन के महान क्रांतिकारियों की चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई। उसके बाद छात्र छात्राओं ने क्रांतिकारी गीत प्रस्तुत किए।
कार्यक्रम में वक्ताओं ने कहा कि आज़ादी आन्दोलन के गौरवशाली इतिहास में काकोरी की घटना एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है जिसने दिल्ली से लंदन तक अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला दी थी। क्रांतिकारियों को देश की आजादी के लिए धन की आवश्यकता थी, उन्होंने अंग्रेजों के सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनाई और सुनियोजित ढंग से लखनऊ के पास काकोरी में ट्रेन में रखे अंग्रेजों के सरकारी खजाने को लूटने का निर्णय लिया, जिसे 9 अगस्त 1925 को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया। इस घटना को काकोरी ट्रेन एक्शन के नाम से जाना गया, जिसका नेतृत्व कांतिकारी दल- हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी (HRA) के नेता रामप्रसाद बिस्मिल ने किया। इस ऐक्शन में कुल 10 क्रांतिकारी- रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, चंद्रशेखर आजाद, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, मन्मथनाथ गुप्त, केशव चक्रवर्ती, बनवारीलाल, मुरारीलाल, मुकुन्दीलाल और शचीन्द्रनाथ बख्शी शामिल थे। इस घटना को भारतीय आजादी आन्दोलन के इतिहास में काकोरी कांड के नाम से भी जाना जाता है।
बाद में अंग्रेजी हुकूमत द्वारा क्रांतिकारियों की धरपकड़ शुरू हुई और एक के बाद एक लगभग 40 से अधिक क्रांतिकारी गिरफ्तार कर लिए गये। इस घटना के एक प्रमुख किरदार चंद्रशेखर आजाद को अंग्रेजों की पुलिस कभी गिरफ्तार नहीं कर सकी। मुकदमों का दौर चला और 19 दिसम्बर 1927 को तीन क्रांतिकारियों में रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर की जेल में अशफाक उल्ला खां को फैजाबाद की जेल में व ठाकुर रोशन सिंह को इलाहाबाद की जेल में फांसी दी गई। राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी को तय तिथि से दो दिन पूर्व ही 17 दिसम्बर 1927 को गोण्डा की जेल में फांसी दे दी गई। इसके अलावा अन्य कई क्रांतिकारियों को कालापानी, उम्रकैद, 10 साल और 5 साल कारावास की सजा सुनाई गई। काकोरी ऐक्शन की घटना का 100 वर्ष पूरा होने पर हमें उस गौरवशाली संघर्ष की याद दिलाता है। हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी (HRA) का उद्देश्य एक ऐसा गणतांत्रिक आजाद भारत बनाना था जिसमें हर एक इंसान के लिए जरूरी शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सुरक्षा व आवास की जरूरतें पूरी हो पायें। देश में अमन-चैन, भाईचारा रहे व धर्म-जाति और क्षेत्र के नाम पर कोई बंटवारा न हो।
बाद में भगतसिंह व उनके साथियों ने हिन्दुस्तान में समाजवादी समाज की स्थापना करना उन्होंने अपना लक्ष्य घोषित किया था। इसीलिए क्रांतिकारी संगठन- हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) में "सोशलिस्ट" शब्द जोड़कर संगठन का नया नाम "हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA)" बनाया। जिसका कमान्डर-इन-चीफ महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद को चुना गया। HSRA ने अपने घोषणापत्र में स्पष्ट कहा - "भारतीय पूँजीपति भारतीय लोगों को धोखा देकर विदेशी पूँजीपति से विश्वासघात की कीमत के रूप में सरकार में कुछ हिस्सा प्राप्त करना चाहते हैं। इसी कारण मेहनतकश की तमाम आशाएँ अब सिर्फ समाजवाद पर टिकी हैं और सिर्फ यही पूर्ण स्वराज्य और सब भेदभाव ख़त्म करने में सहायक साबित हो सकता है। देश का भविष्य नौजवानों के सहारे है। वही धरती के बेटे हैं।" भगतसिंह ने आजादी के मायने के बारे में कहा था - "आजादी के मायने यह नहीं होते कि सत्ता गोरे हाथों से काले हाथों में आ जाए, यह तो सत्ता का हस्तांतरण हुआ। असली आजादी तो तब आएगी जब वह आदमी, जो खेतों में अन्न उपजाता है, भूखा नहीं सोये। वह आदमी, जो कपड़े बुनता है, नंगा नहीं रहे। वह आदमी, जो मकान बनाता है, स्वयं बेघर नहीं रहे।" यही सपना लेकर काकोरी के क्रांतिकारी शहीद हुए।
लेकिन यह दुःखद है कि आजादी के 77 वर्ष बाद और काकोरी एक्शन के 100 वर्ष पूरे होने पर भी हम देश को क्रांतिकारियों के सपनों के विपरीत एक अलग ही स्थिति में पाते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आम आदमी से दूर होते जा रहे हैं, अमीर और गरीब की खाई लगातार बढ़ती जा रही है। देश के सामाजिक, सांस्कृतिक व साम्प्रदायिक सौहार्द में नफरत का जहर घोला जा रहा है। काकोरी की घटना ने जहाँ बिस्मिल-अशफाक की बेजोड़ दोस्ती व एक दूसरे के प्रति अटूट विश्वास का उदाहरण प्रस्तुत किया। वहीं इसके विपरीत आज हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द को खत्म किया जा रहा है। दूसरी तरफ बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, महंगाई व अशिक्षा-कुशिक्षा तेजी से बढ़ रही है। साथ ही, महिलाओं पर हमले लगातार बढ़ रहे हैं। छात्रों व युवाओं की नीति-नैतिकता की रीढ़ को तोड़ने के लिए अश्लीलता, अपसंस्कृति व नशाखोरी को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि वे किसी भी तरह के अन्याय व अत्याचार का विरोध करने का साहस न कर सकें। क्रांतिकारियों के जीवन संघर्ष को पाठ्चक्रम से हटाया जा रहा है। लेकिन इन सबके बावजूद भी आम जनता खासकर छात्र व युवा गलत का विरोध करने के लिए आगे आ रहे हैं। संगठित व असंगठित ढंग से युवाओं का आक्रोश फूट रहा है। हमारा मानना है कि काकोरी ऐक्शन व आजादी आन्दोलन की गैर-समझौतावादी धारा के क्रांतिकारियों के जीवन संघर्ष से सीख लेकर हमारे जीवन व देश में जो समस्याएं है उनके सकारात्मक समाधान के लिए संगठित तौर पर हम आगे बढ़ सकते हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता - श्री सुरेश यादव (अध्यापक) व संचालन- श्री शिवप्रसाद विश्वकर्मा ने किया। काकोरी-ऐक्शन शताब्दी वर्ष आयोजन समिति के जिला सचिव श्री प्रमोद कुमार शुक्ल के अलावां श्री अपूर्व दूबे, इन्दुकुमार शुक्ल, दिलीप कुमार खरवार, प्रवीण कुमार सिंह, मनोज कन्नौजिया, संतोष कुमार प्रजापति, अंजली सरोज, पूनम प्रजापति, देवव्रत निषाद व अन्य ने सम्बोधित किए। इस अवसर पर श्री अलगूराम, मिथिलेश कुमार मौर्य, शिवभवन सिंह, राकेश निषाद, विनोद मौर्य, रवीन्द्र पटेल, राकेश मौर्य, संतोष मौर्य, अनीता निषाद, रीता, सरोजा सहित सैकड़ों लोग मौजूद रहे।
.png)
